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को वो॑ म॒हान्ति॑ मह॒तामुद॑श्नव॒त्कस्काव्या॑ मरुतः॒ को ह॒ पौंस्या॑। यू॒यं ह॒ भूमिं॑ कि॒रणं॒ न रे॑जथ॒ प्र यद्भर॑ध्वे सुवि॒ताय॑ दा॒वने॑ ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ko vo mahānti mahatām ud aśnavat kas kāvyā marutaḥ ko ha pauṁsyā | yūyaṁ ha bhūmiṁ kiraṇaṁ na rejatha pra yad bharadhve suvitāya dāvane ||

पद पाठ

कः। वः॒। म॒हान्ति॑। म॒ह॒ताम्। उत्। अ॒श्न॒व॒त्। कः। काव्या॑। म॒रु॒तः॒। कः। ह॒। पौंस्या॑। यू॒यम्। ह॒। भूमि॑म्। कि॒रण॑म्। न। रे॒ज॒थ॒। प्र। यत्। भर॑ध्वे। सु॒वि॒ताय॑। दा॒वने॑ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:59» मन्त्र:4 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:24» मन्त्र:4 | मण्डल:5» अनुवाक:5» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मरुतः) विचार करनेवाले जनो ! (महताम्) बड़े (वः) आप लोगों के वा आप लोगों को (महान्ति) बड़े विज्ञान आदिकों को (कः) कौन (उत्, अश्नवत्) उत्तमता से प्राप्त होता है (कः) कौन (काव्या) बुद्धिमानों के कामों को उत्तमता से प्राप्त होता है (कः) कौन (ह) निश्चय से (पौंस्या) पुरुषों के इन बलों को प्राप्त होता है जिससे (यूयम्) आप लोग (भूमिम्) पृथिवी को (किरणम्) दीप्ति के (न) समान (रेजथ) कँपावें और (यत्) जिसको (ह) निश्चय (सुविताय) ऐश्वर्य और (दावने) देनेवाले के लिये (प्र, भरध्वे) धारण कीजिये, उसी को सब लोग प्राप्त होवें ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में प्रश्न और उत्तर हैं-कौन यथार्थवक्ता जनों के समीप से बड़े विज्ञानों को प्राप्त होता है और कौन आप्तजनों के कर्म्मों को और कौन वीरों के बलों को प्राप्त होता है, इन प्रश्नों का उत्तर यह है कि पवित्र अन्तःकरण युक्त और धर्म्म के सुनने की इच्छा करनेवाले धर्मिष्ठ पुरुषार्थी और ब्रह्मचारी हैं ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मरुतो ! महतां वो महान्ति क उदश्नवत् कः काव्योदश्नवत्को ह पौंस्योदश्नवद्यतो यूयं भूमिं किरणं न रेजथ यद्ध सुविताय दावने प्र भरध्वे तदेव सर्वैः प्राप्तव्यम् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कः) (वः) युष्माकं युष्मान् वा (महान्ति) विज्ञानादीनि (महताम्) (उत्) (अश्नवत्) प्राप्नोति (कः) (काव्या) कवीनां मेधाविनां कर्म्माणि (मरुतः) मननशीलाः (कः) (ह) किल (पौंस्या) पुंसामिमानि बलानि (यूयम्) (ह) खलु (भूमिम्) (किरणम्) दीप्तिम् (न) इव (रेजथ) कम्पध्वम् (प्र) (यत्) यम् (भरध्वे) धरत (सुविताय) ऐश्वर्य्याय (दावने) दात्रे ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्र प्रश्नोत्तराणि सन्ति−क आप्तानां सकाशान्महान्ति विज्ञानानि प्राप्नोति, कश्चाप्तानां कर्म्माणि, को वीराणां बलानि चेत्यतेषामुत्तरं ये पवित्रान्तःकरणाः शुश्रूषवो धर्मिष्ठाः पुरुषार्थिनो ब्रह्मचारिणश्चेति ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात प्रश्नोत्तरे आहेत. कोण विद्वानांकडून विज्ञान प्राप्त करतो? कोण बुद्धिमान लोकांच्या कर्मानुसार वागतो? व कोण वीरांचे बल प्राप्त करतो? या प्रश्नांचे उत्तर असे की पवित्र अंतःकरण असणारे, धर्माचे श्रवण करण्याची इच्छा असणारे, धार्मिक पुरुषार्थी व ब्रह्मचारी हे प्राप्त करतात. ॥ ४ ॥